17 May 2015

संस्कृत की सामान्य जानकारियाँ


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(1.) संस्कृत में तीन वचन होते हैंः--
(क) एकवचन,
(ख) द्विवचन,
(ग) बहुवचन ।
(2.) संस्कृत में तीन लिंङ्ग होते हैंः---
(क) पुल्लिङ्ग,
(ख) स्त्रीलिङ्ग,
(ग) नपुंसकलिङ्ग ।
(3.) संस्कृत में तीन पुरुष होते हैंः--
(क) प्रथम पुरुष,
(ख) मध्यम पुरुष,
(ग) उत्तम पुरुष ।
(4.) संस्कृत में सात विभक्तियाँ होती हैं, जबकि कारक छः होते हैंः--
(क) प्रथमा विभक्ति--कर्त्ता कारक,
(ख) द्वितीया विभक्ति---कर्म कारक,
(ग) तृतीया विभक्ति---करण कारक,
(घ) चतुर्थी विभक्ति---सम्प्रदान कारक,
(ङ) पञ्चमी विभक्ति---अपादान कारक,
(च) षष्ठी विभक्ति---सम्बन्ध,
(छ) सप्तमी विभक्ति---अधिकरण कारक,
(ज) प्रथमा विभक्ति---सम्बोधन ।
सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक नहीं माना जाता है, क्योंकि इन दोनों का क्रिया के साथ सम्बन्ध नहीं बैठता, जबकि अन्य सभी का क्रिया के साथ सम्बन्ध बैठ जाता है। वस्तुतः कारक वही होता है, जिसका क्रिया के साथ सम्बन्ध हो।
(5.) संस्कृत में लकार दस होते हैंः--
(क) लट् लकार--वर्तमान काल,
(ख) लिट् लकार--भूत काल,
(ग) लुट् लकार---अनद्यतन भविष्यत्काल,
(घ) लृट् लकार---भविष्यत् काल,
(ङ) लेट् लकार--केवल वेद में प्रयुक्त। लिङ् के अर्थ में,
(च) लोट् लकार--विधि-आदि अर्थों में,
(छ) लङ् लकार--अनद्यतन भूतकाल,
(ज) लिङ् लकार--इसके दो भेद हैं--
विधिलिङ्--आज्ञादि छः अर्थों में प्रयुक्त।
आशीर्लिङ्--आशीर्वाद-अर्थ में।
(झ) लुङ् लकार---सामान्य भूतकाल में,
(ञ) लृङ् लकार--क्रिया की अतिपत्ति में प्रयुक्त।
(6.) संस्कृत में 10 गण होते हैं---
(क) भ्वादि-गण,
(ख) अदादि-गण,
(ग) जुहोत्यादि-गण,
(घ) दिवादि-गण,
(ङ) स्वादि-गण,
(च) तुदादि-गण,
(छ) रुधादि-गण,
(ज) तनादि-गण,
(झ) क्रियादि-गण,
(ञ) चुरादि-गण ।
(7.) संस्कृत में चार प्रकार के शब्दः--
(क) नाम,
(ख) आख्यात,
(ग) उपसर्ग,
(घ) निपात ।
(8.) सूत्रों के सात प्रकार होते हैंः---
(क) अधिकार-सूत्र,
(ख) सञ्ज्ञा-सूत्र,
(ग) परिभाषा-सूत्र,
(घ) विधि-सूत्र,
(ङ) निषेध-सूत्र,
(च) नियम-सूत्र,
(छ) अतिदेश-सूत्र ।